tag:blogger.com,1999:blog-7159675400562419479.post8340822335112520038..comments2023-11-02T17:20:48.813+05:30Comments on सुरेश यादव सृजन: अपनी बातसुरेश यादवhttp://www.blogger.com/profile/16080483473983405812noreply@blogger.comBlogger33125tag:blogger.com,1999:blog-7159675400562419479.post-46781252047481059812010-07-25T13:54:50.843+05:302010-07-25T13:54:50.843+05:30दोनों रचनाएँ बहुत प्रभावी हैं। यथार्थ को बेहद खुबस...दोनों रचनाएँ बहुत प्रभावी हैं। यथार्थ को बेहद खुबसूरत शब्दों में अभिव्यक्ति देते हैं आप........उमेश महादोषीhttps://www.blogger.com/profile/17022330427080722584noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7159675400562419479.post-69954524795171049332010-07-13T18:52:57.911+05:302010-07-13T18:52:57.911+05:30सुरेश जी की कविताएँ बहुत गहराई तक उतर जाती हैं। इन...सुरेश जी की कविताएँ बहुत गहराई तक उतर जाती हैं। इनकी कविताओं में हवाई कल्पना नहीं बल्कि अनुभूति के विशेष क्षणों के ऐसे टुकड़े हैं जिन्हें कवि ने न जाने कितने यत्न से सहेज कर रखा और शब्दों में सजाकर यहाँ प्रस्तुत किया है। <br />-डा० जगदीश व्योम डॅा. व्योमhttps://www.blogger.com/profile/10667912738409199754noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7159675400562419479.post-41515503990052497192010-07-08T23:34:13.285+05:302010-07-08T23:34:13.285+05:30सुरेश भाई, आप की चिंता सहज है. एक कवि होने के नाते...सुरेश भाई, आप की चिंता सहज है. एक कवि होने के नाते. कवि होने की शर्त होती है मनुष्यता और जो मनुष्य होगा सिर्फ उसी से इस तरह की चिंता की अपेक्षा की जा सकती है.आदमी किसी अधूरेपन में नहीं शायद अपने ज्ञान के दर्प में ऐसे खिलौने बनाता है, जो बाद में उसे ही डराने लगते हैं. वह नियंता बनना चाहता है,इस तरह पर हर बार वह अपने ही जाल में फंस जाता है. वास्तव में कालिदास वही बन सकता है, जो या तो परम मूर्ख हो या परम निश्चिंत. आप की बस्ती उन लोगों की है, जिनके पास खोने के लिये कुछ नहीं है और यही तो कठिन से कठिन जीवन का सच्चा रोमांस है. अच्छी कविताओं के लिये मेरी बधाईयां.डा. सुभाष रायhttp://www.bat-bebat.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7159675400562419479.post-55995788958115380962010-06-29T10:16:15.141+05:302010-06-29T10:16:15.141+05:30suresh jee , pranam !
aap ne baarish me kaviton ka...suresh jee , pranam !<br />aap ne baarish me kaviton ka naya rang prastutat kar diya , dil ko choone wali hai ,<br />sadhuwdसुनील गज्जाणीhttps://www.blogger.com/profile/12512294322018610863noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7159675400562419479.post-10983319387781031982010-06-27T17:07:08.073+05:302010-06-27T17:07:08.073+05:30उत्तम कविताएं और उत्तम विचार्…उत्तम कविताएं और उत्तम विचार्…संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7159675400562419479.post-16399278827869728312010-06-24T22:57:01.684+05:302010-06-24T22:57:01.684+05:30हरकीरत 'हीर' जी ,आप का शुक्र गुज़ार हूँ की ...हरकीरत 'हीर' जी ,आप का शुक्र गुज़ार हूँ की आप ने गलती करते ही ऊँगली उठा दी और मैं नीरव जी की सहायता से सुधार कर सका.नए ब्लाग लेखकों से ऐसी खूब सूरत गलतियाँ प्रायः हो जाया करती हैं.किसीकी ख़ूबसूरत कविता पर टिप्पड़ी करनी ,थी,गलती से मेरे हिस्से में आगई. पर सच मानिये मात्र दो चार मिनट से अधिक .....नहीं.आप को एक वार फिर धन्यवाद.सुरेश यादवhttps://www.blogger.com/profile/16080483473983405812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7159675400562419479.post-51660848035027390172010-06-24T22:18:19.877+05:302010-06-24T22:18:19.877+05:30कृपया 'शिर्सक' को शीर्षक पढ़ें ....
और ये ...कृपया 'शिर्सक' को शीर्षक पढ़ें ....<br /><br />और ये क्या अपने आप को ...अपनी ही बधाई .....???<br />ये कला तो आपसे सीखनी पड़ेगी ....!!हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7159675400562419479.post-32388569161157622582010-06-24T22:13:48.973+05:302010-06-24T22:13:48.973+05:30सुरेश जी पहली कविता का शिर्सक 'खिलौना बम' ...सुरेश जी पहली कविता का शिर्सक 'खिलौना बम' कर दीजिये तो ज्यादा अर्थ स्पष्ट होगा ......!!<br /><br />दोनों रचनायें प्रभावी हैं ....!!हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7159675400562419479.post-39205234841221200252010-06-24T21:17:57.194+05:302010-06-24T21:17:57.194+05:30बेकाबू हुए हैं जब से ये खिलौने
एक-एक कर हम भूल गए...बेकाबू हुए हैं जब से ये खिलौने <br />एक-एक कर हम भूल गए हैं<br />सारे खेल बदहवासी में <br />खिलौने अब हमें डराने लगे हैं.<br />कितनी सहजता से कितनी बड़ी बात कह डाली है आपने ..बहुत सुन्दर.shikha varshneyhttps://www.blogger.com/profile/07611846269234719146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7159675400562419479.post-87179253223135974452010-06-24T19:58:03.276+05:302010-06-24T19:58:03.276+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.सुरेश यादवhttps://www.blogger.com/profile/16080483473983405812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7159675400562419479.post-47193110458716129572010-06-24T13:18:01.724+05:302010-06-24T13:18:01.724+05:30आज पहली बार आना हुआ पर आना सफल हुआ देर से आने का द...आज पहली बार आना हुआ पर आना सफल हुआ देर से आने का दुःख भी बेहद प्रभावशाली प्रस्तुति किस किस बात की तारीफ करूँ ...रचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7159675400562419479.post-58248854865277341312010-06-23T21:14:25.216+05:302010-06-23T21:14:25.216+05:30आपकी इन छोटी-छोटी कविताओं में पूरे संसार की पीड़ा ...आपकी इन छोटी-छोटी कविताओं में पूरे संसार की पीड़ा उकेरी गई है । बधाईसहज साहित्यhttps://www.blogger.com/profile/09750848593343499254noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7159675400562419479.post-42446345845571977332010-06-22T14:27:46.781+05:302010-06-22T14:27:46.781+05:30आदरणीय सुरेश जी, नमस्कार
आपकी इन दोनों कविताओं क...आदरणीय सुरेश जी, नमस्कार<br /><br /><br />आपकी इन दोनों कविताओं को मैं पहले दिन ही पढ़ चुका हूँ..आज दुबारा पढ़ना भी बहुत बढ़िया लगा..बेहतरीन भाव से सराबोर है आपकी रचना..इतनी बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई..<br /><br /><br />सस्नेह<br />विनोद पांडेय<br />voice.vinod@gmail.comAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7159675400562419479.post-10031714113413283912010-06-22T14:27:46.780+05:302010-06-22T14:27:46.780+05:30कविवर सुरेश जी,
अभी अभी आपके ब्लॉग की सभी कविताएँ ...कविवर सुरेश जी,<br />अभी अभी आपके ब्लॉग की सभी कविताएँ पढ़ गयी। इन छोटी छोटी कविताओं में गहरा <br />जीवन-दर्शन झाँक रहा है. जो मन को सहज ही छू लेता है।इनमें विविधता है, सच्चाई है।<br />वैसे सभी में कुछ न कुछ संदेश है किन्तु विशेष कर "वादे", "प्यासे पत्थर" और<br />"तिनका और आग" बहुत अच्छी लगीं। आपका साधुवाद!!<br /> मैंने कोई ब्लॉग नहीं बनाया है,पर लिखती हूँ,कविता भी और गद्य भी। पुस्तकें हैं<br /> पत्रिकाओं में और ई-कविता पर भी। कभी आपको भेजूँगी।<br /> <br /> शुभकामनाओं सहित,<br /> शकुन्तला बहादुर<br />shakunbahadur@yahoo.comAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7159675400562419479.post-7337310091970964272010-06-22T13:01:59.867+05:302010-06-22T13:01:59.867+05:30भाई सुरेश,
बहुत ही सार्थक और मन को छू देने वाली क...भाई सुरेश,<br /><br />बहुत ही सार्थक और मन को छू देने वाली कविताएं हैं. आपकी कविताओं की दूसरी खूबी जो मुझे प्रभावित करती है वह है कम शब्दों में बड़ी कह देने की . <br /><br />बधाई,<br /><br />चन्देलरूपसिंह चन्देलhttps://www.blogger.com/profile/01812169387124195725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7159675400562419479.post-48009900976973227502010-06-21T22:54:03.489+05:302010-06-21T22:54:03.489+05:30सुंदर कविताएं।सुंदर कविताएं।सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7159675400562419479.post-56528438364473530862010-06-21T17:33:13.247+05:302010-06-21T17:33:13.247+05:30अक्सर इनकी चीखों का
इनके दर्दों से कोई रिश्ता नही...अक्सर इनकी चीखों का <br />इनके दर्दों से कोई रिश्ता नहीं होता <br />किसी और के जुकाम पर बेहाल होते हैं <br />इस बस्ती के लोग <br /><br />aapki kavitaye.N padhna sukhad raha........श्रद्धा जैनhttps://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7159675400562419479.post-13367133779104925122010-06-21T15:58:04.242+05:302010-06-21T15:58:04.242+05:30आपकी दोनों रचनाएं पढ़ीं.....ऐसे मंत्रमुग्ध किया है ...आपकी दोनों रचनाएं पढ़ीं.....ऐसे मंत्रमुग्ध किया है इसने कि अब क्या कहूँ,क्या टिपण्णी करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा है...<br /><br />माता से प्रार्थना करती हूँ कि वे सदा आपकी लेखनी पर सहाय रहें...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7159675400562419479.post-49243747662916781122010-06-20T12:27:26.104+05:302010-06-20T12:27:26.104+05:30सुरेशजी ,
इन कविताओं में माटी की गंध है सोंधी-सोंध...सुरेशजी ,<br />इन कविताओं में माटी की गंध है सोंधी-सोंधी ! वो देर तक महकती रहती है मन की भीतरी परतों पर ! बधाई !<br />Rekha Maitra <br />rekha.maitra@gmail.comAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7159675400562419479.post-29364755967027893952010-06-20T12:27:26.105+05:302010-06-20T12:27:26.105+05:30भाई!
धन्यवाद
आप की दोनों रचनाएँ पढ़ीं. अच्छी लगीं...भाई!<br /> धन्यवाद<br />आप की दोनों रचनाएँ पढ़ीं. अच्छी लगीं.<br />मगर पहली कविता में खिलौना के साथ 'रचना' शब्द कुछ जम नहीं रहा. मेरे ख़याल में खिलौना के साथ रचना के बदले बनाना अधिक उचित लगता है. हो सके तो इस पर विचार करें. वैसे कविता आप की है आप स्वतंत्र हैं.<br />आलम ख़ुर्शीद<br />alamkhurshid9@gmail.comAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7159675400562419479.post-1027635057190158922010-06-20T12:27:26.103+05:302010-06-20T12:27:26.103+05:30प्रिय सुरेश,
अच्छी ऒर सहज मार्मिक कविताएं पढ़ने का ...प्रिय सुरेश,<br />अच्छी ऒर सहज मार्मिक कविताएं पढ़ने का अवसर देने के लिए कृतज्ञ रहूं गा । विशेष रूप से इस बस्ती के लोग कविता ने बेचॆन किया । बधाई ऒर शुभकामनाएं ।<br /> <br />दिविक रमॆश<br />divikramesh34@gmail.comAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7159675400562419479.post-52647700240114845322010-06-18T19:54:38.817+05:302010-06-18T19:54:38.817+05:30Suresh jee aapki dono kavitaon ne mere man ko gehr...Suresh jee aapki dono kavitaon ne mere man ko gehre se chhua ha,kitni gehri baat kahi hai-<br /> sare khel badahwaasi me<br />khilone ab hame darane lage hain, tatha-<br />chulhe inhee-ke hote hain<br />jinme oogtee hai ghaas.<br />bahut sundar rachna hai,badhaiashok andreyhttps://www.blogger.com/profile/03418874958756221645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7159675400562419479.post-37009374382155187112010-06-18T18:28:39.505+05:302010-06-18T18:28:39.505+05:30दोनों ही कविताएँ अनुपम हैं। पहली कविता की हर पंक्त...दोनों ही कविताएँ अनुपम हैं। पहली कविता की हर पंक्ति अस्तित्व के प्रति सचेत करती-सी लगती है और लगातार भयावह होती जा रही परिस्थितियों से रू-ब-रू कराती है। दूसरी कविता की जमीन पहली से भिन्न है। लगता है कि वह खिलौनों से आगे की दुनिया के लोगों से मिलवा रही है। पहली नजर में तो लगा था कि यह अलग है और वह अलग।बलराम अग्रवालhttps://www.blogger.com/profile/04819113049257907444noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7159675400562419479.post-28930280110210313622010-06-18T11:07:04.349+05:302010-06-18T11:07:04.349+05:30bahut achchhi kavitayenbahut achchhi kavitayenAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/12313797805658263500noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7159675400562419479.post-84401654452412488502010-06-17T23:44:50.116+05:302010-06-17T23:44:50.116+05:30सोचने को मजबूर करती अच्छी कविता...सोचने को मजबूर करती अच्छी कविता...आभाhttps://www.blogger.com/profile/04091354126938228487noreply@blogger.com