मित्रो, मेरे इस ब्लॉग पर मेरी कविताओं को पढ़कर आपकी जो प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं, मेरे लिए उन्होंने उत्साह और प्रेरणा का कार्य किया। मैं आभारी हूँ। इस छ्ठी पोस्ट में मैं अपनी तीन कविताएं प्रस्तुत कर रहा हूँ। मेरी ये कविताएं भी आपसे पहले जैसा ही संवेदनात्मक संबंध कायम रख पाएंगी, यह आशा करता हूँ।
-सुरेश यादव
बिछा रहा जब तक
घिरा रहा
शुभ-चिन्तकों से
बिछा रहा
जब तक सड़क सा !
खड़ा हुआ तन कर
एक दिन
अकेला रह गया
दरख़्त-सा !
तिनके में आग
बरसाती मौसम का डर
अधबुना रह न जाए नीड़
चिड़िया को फिकर है
बेचैन हुई उड़ती
इधर से उधर
तिनके जुटाती
जलते चूल्हे से भी
खींचकर ले गई तिनका
बुन रही है
नीड़ में जिसको जल्दी-जल्दी !
आग है तिनके में
और
चिड़िया– आग से बेखबर है
चिड़िया को बस
नीड़ की फिकर है।
वादे
उम्र भर
संग चलने के वादे
कितनी जल्दी थक जाते हैं
दो चार कदम चलते
रुक जाते हैं
ज़िन्दगी की राह
इतनी उबड़-खाबड़ है कि
वादों के नन्हें-नन्हें पांव
डग नहीं भर पाते
कोई भी मोड़
बहाने की तरह
खड़ा मिल जाता है इनको
और
वादे– बहाने की उंगली थाम कर
जाने कहाँ चले जाते हैं।
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