
अपनी बात
इस वार चाहता हूँ ,कुछ न कहूँ जो कुछ कहना है कवितायेँ कहें। आप की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी…
-सुरेश यादव
यह शहर किसका है
भटकने को मजबूर
ये बच्चे भी
इसी शहर के हैं
और…जलती सिगरेटें
रास्तों पर फेंकने के आदी
ये लोग भी इसी शहर के हैं
ये शहर किसका है
जब-जब मेरा मन पूछता है
जलती सिगरेट पर पड़ता है
किसी का नंगा पांव
और…
जवाब में एक बच्चा चीखता है.
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कुदरत का पुरुस्कार
छाँव सबको देने का प्रण
पेड़ों ने लिया
धूप ने बदले में
फूलों को रंगीन
पेड़ों को हरा भरा कर दिया
हज़ारों मील चल कर
गयी थीं जो नदियाँ
और…मीठा पानी,
खारे समुन्दर को दिया
बदल गया इतना मन समुन्दर का
रख लिया खारापन पास अपने
और बादलों के हाथ
भेजा मीठे जल का तोहफा
नदियों को फिर जिसने भर दिया।
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धरती माँ कहलाती है
फसलों को लहलहाती है
फूलों में भरती रंग
पेड़ों को पाल पोस कर ऊंचा करती
पत्ते पत्ते में रहे जिन्दा हरापनअपनी देह को खाद बनाती है
धरती इसी लिए माँ कहलाती है |
पानी से तर हैं सब
नदियाँ, पोखर, झरने और समंदर
ज्वालामुखी हजारों फिर भी
सोते धरती के अन्दर
जैसा सूरज तपता आसमान में
धरती के भीतर भी दहकता है
गोद में लेकिन सबको साथ सुलाती है
धरती इसी लिए माँ कहलाती है .
आग पानी को सिखाती साथ रहना
हर बीज सीखता इस तरह उगना
एक हाथ फसलें उगा कर
सबको खिलाती है
दुसरे हाथ सृजन का ,
सह -अस्तित्व का ,
एकता का - पाठ पढ़ाती है
धरती…इसी लिए माँ कहलाती है।
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