कविताइकसठवें गणतंत्र दिवस के इस पावन दिवस पर मैं चाहता हूं कि आपकी भावनाओं के साथ जुड़कर राष्ट्रीय एकता और मानवता से जुड़े सवालों का साझीदार बन सकूं। सृजन वह माध्यम है जो सकारात्मक सोच को उजागर करता है और जीवन के सरोकारों को जीवंतता प्रदान करता है। भारतीय गणतंत्र जिस रूप में फल फूल कर हमारे सामने है उसका चेहरा निश्चित रूप से कल्याणकारी मानवतावादी है। जन जन सुखी हो यह कामना किसी भी गणतंत्र की सुखद कामना है, भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला भी यही है। एक कवि के रूप में मैं इस पावन अवसर पर आपके सामने प्रस्तुत होकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं।
इस नये वर्ष में प्रस्तुत कविता के माध्यम से मैं आपके बीच आ गया हूं और आपकी सार्थक टिप्पणी मुझे आनंदित करेगी तथा रचनाकर्म में मेरा मार्गदर्शन भी करेगी। आशा है आप मेरे इस ब्लॉग के इस पहले अंक को अपनी शुभकामनायें प्रदान कर मुझे कृतार्थ करेंगे।
नए इस बरस में
सुरेश यादव
नए इस बरस में
तुम्हारे हाथों
सृजन के ऐसे गुल खिलें
कि–
होंठ जो
गीले रहे बीते बरस-भर
सुनहले भोर की
आशा भरी चहक पा
फिर से खिल उठें।
गा उठे हर होंठ
ऐसा गीत लिख दे
साल के माथे पर
धूप की पहली किरण से
रच दे
खुशबू का शिलालेख ऐसा
कि गंध खोया हर फूल
जिसे अपना कहे।
सृज कवि ऐसी कविता
कि अर्थ लय अस्मिता से
बेदख़ल हुआ हर शब्द
उसमें गा सके।
कहीं से कुछ नहीं पाया
जिसने गए बरस-भर
कवि तेरे सृजन में
वह पा सके।
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