गुरुवार, 26 जनवरी 2012

कविता




अपनी बात

मित्रो, आप सभी को पावन गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। मेरे इस ब्लॉग को आज पूरे दो वर्ष हो गए हैं। २६ जनवरी २०१० को पहली पोस्ट की थी। अब तक कुल २१ पोस्ट -अंक आप के सामने ला सका हूँ और मात्र ५२ कवितायेँ प्रकाशित हुई हैं। मित्रों को मेरी धीमी गति से शिकायत है और मेरी यह आदत है। सच मानिये, मेरी यह चिंता रहती है कि आप के कीमती समय का एक भी अंश निरर्थक शब्दजाल में नष्ट न हो, इसीलिए कोशिश रहती है कि अपनी चुनी हुई कवितायें धीरे-धीरे आप के सामने लाता रहूँ तथा आप के साथ मेरी संवेदनात्मक साझेदारी बनी रहे। इसी विश्वास के साथ अपनी तीन कवितायें आप के सामने रख रहा हूँ। आप की प्रतिक्रियाएं मेरी लिए महत्व की होती हैं। अतः प्रतीक्षा रहेगी…
-सुरेश यादव




किसी और का घर है

घोंसला मत बना
यहाँ - चिड़िया
किसी और का घर है



साफ़ सफाई तो होगी
इस घर की
दीवारों की, छत की
घर के भीतर घर ?
समझो सपना भर है

किसी और की छत को
मत आकाश बना
पंखे लगे हुए हैं - हर छत के नीचे

जितनी जोर उड़ान भरेगी
तेज रफ़्तार - टकराएगी पंखुरिओं से
घायल होकर उतनी बार गिरेगी

मौत लिखी यहाँ हर उड़ान पर है
आखिर और किसी का घर है ।

घर और डर

भीतर डर है
बाहर डर है
कहीं बीच में घर है


घर आने में डर है
घर से जाने में डर है
घर की साँसों में डर है


घर की यादों में डर है
भूलो घर - तो डर है
डर के हाथों -खेल रहा घर है

डर की चर्चा घर- घर है
जाने घर के भीतर डर है
या फिर -
डर के भीतर घर है।



अपनी राह

अपने पैरों
अपनी राह
जितना छला हूँ
बस -
उतना ही चला हूँ…

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