शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

अपनी बात

मित्रो, गणतंत्र दिवस के पावन पर्व पर मैंने अपने इस नए ब्लॉग की शुरुआत की थी। अपने सहधर्मियों को नव वर्ष की काव्य-मय बधाई जिस कविता -तुम्हारे हाथों - के माध्‍यम से दी थी उसने बदले में मुझे बधाइयों से लाद दिया। मैं आप सभी का आभारी हूँ। भाई सुभाष नीरव ने मेरे गद्य को प्रकाशित करने हेतु तो दिनेश राय द्विवेदी जी ने 'यथार्थ की ज़मीन पर रचनात्मक आशावाद’ की उम्मीद की है। अलका सिन्हा ने 'सृजन और विश्वास' के प्रति आश्वस्ति मांगी है। राम शिवमूर्ति जी नए आयाम के प्रति आशान्वित हैं तो भाई बलराम जी सृजन शील आह्वान के प्रति विश्वास लिए हुए हैं। महावीर शर्मा जी ने कविता के आशावाद को अपना आशीर्वाद दिया है। निर्मला कपिला जी ने और रानी विशाल ने क्रमशः 'वंचितों के प्रति समर्पण' तथा शैली की प्रभावशीलता को बनाये रख पाने की शक्ति का संचार किया है। मेरा यह प्रयास रहेगा कि आप सभी की आशाओं पर खरा उतरूं। सर्वश्री मिथिलेश दुबे, समीर लाल, कुलवंत हैप्पी, अभिषेक प्रसाद 'अवि', मुरारी पारीक, कवि कुलवंत, श्यामकोरी 'ई 'उदय' और विशेष रूप से रश्मि प्रभा तथा नन्हीं पाखी का उनकी शुभ कामनाओं के लिए आभारी हूँ ।
यह ब्लॉग मेरी अपनी रचनाओं के लिए ही मित्रों की इच्छा के कारण निर्धारित है। इसलिए अपनी सभी विधाओं की रचनाओं को प्रकाशित करने की अनुमति चाहूँगा। ऐसा प्रयास अवश्य करूँगा कि रचनाएँ आप का समय नष्ट न करें। मेरी चार कवितायेँ प्रस्तुत हैं
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-सुरेश यादव



सवेरा : एक पुल
सवेरा
तोड़ देता रोज
एक खौफनाक स्‍वप्‍न

जोड़ देता
खौफनाक सवाल

सवेरा -
खतरनाक पुल है
दिन -
इसी पर से
बेखौफ गुजरता रोज।
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