मंगलवार, 26 जनवरी 2010

अपनी बात

इकसठवें गणतंत्र दिवस के इस पावन दिवस पर मैं चाहता हूं कि आपकी भावनाओं के साथ जुड़कर राष्‍ट्रीय एकता और मानवता से जुड़े सवालों का साझीदार बन सकूं। सृजन वह माध्‍यम है जो सकारात्‍मक सोच को उजागर करता है और जीवन के सरोकारों को जीवंतता प्रदान करता है। भारतीय गणतंत्र जिस रूप में फल फूल कर हमारे सामने है उसका चेहरा निश्चित रूप से कल्याणकारी मानवतावादी है। जन जन सुखी हो यह कामना किसी भी गणतंत्र की सुखद कामना है, भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला भी यही है। एक कवि के रूप में मैं इस पावन अवसर पर आपके सामने प्रस्‍तुत होकर स्‍वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं।
इस नये वर्ष में प्रस्‍तुत कविता के माध्‍यम से मैं आपके बीच आ गया हूं और आपकी सार्थक टिप्‍पणी मुझे आनंदित करेगी तथा रचनाकर्म में मेरा मार्गदर्शन भी करेगी। आशा है आप मेरे इस ब्‍लॉग के इस पहले अंक को अपनी शुभकामनायें प्रदान कर मुझे कृतार्थ करेंगे।
कविता
नए इस बरस में
सुरेश यादव

नए इस बरस में
तुम्हारे हाथों
सृजन के ऐसे गुल खिलें
कि–
होंठ जो
गीले रहे बीते बरस-भर
सुनहले भोर की
आशा भरी चहक पा
फिर से खिल उठें।

गा उठे हर होंठ
ऐसा गीत लिख दे
साल के माथे पर
धूप की पहली किरण से

रच दे
खुशबू का शिलालेख ऐसा
कि गंध खोया हर फूल
जिसे अपना कहे।

सृज कवि ऐसी कविता
कि अर्थ लय अस्मिता से
बेदख़ल हुआ हर शब्द
उसमें गा सके।

कहीं से कुछ नहीं पाया
जिसने गए बरस-भर
कवि तेरे सृजन में
वह पा सके।
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21 टिप्‍पणियां:

सुभाष नीरव ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता है। जन कल्याण की भावना एक लेखक/कवि में होनी ही चाहिए तभी वह सच्चा लेखक/कवि कहलाएगा। भाई सुरेश यादव जी आप का यह नया ब्लॉग हमें आपकी मौलिक रचनात्मकता से परिचित कराता रहेगा- चाहे वह कविता हो, कहानी हो, अथवा कोई लेख, ऐसी आशा करता हूँ। "सार्थक सृजन" ब्लॉग से आप एक महत्वपूर्ण और सार्थक कार्य कर ही रहे है, आप अपने व्यक्तिगत ब्लॉग के माध्यम से भी बेहतर समार, देश और दुनिया के लिए अलख जगाते रहें, यही कामना है, गणत्तत्र दिवस पर आपको बधाई और इस नये ब्लॉग की भी !
-सुभाष नीरव

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

कविता सुंदर सच्‍चाईयों से रूबरू कराती है। मन में मानस मिलन के भाव जगाती है। ऐसी कविता तो कवियों की थाती है। न गाई जा रही हो पर फिर भी लय अपनी में गाती जाती है।

Mithilesh dubey ने कहा…

गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें....

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

सुंदर आशावाद है इस कविता में। लेकिन इस आशावाद को कायम रखने के लिए और रचनाएँ चाहिए, यथार्थ की जमीन पर उकेरी हुई।

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा रचना!


गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ.

Kulwant Happy ने कहा…

सुंदर...बेहद सुंदर..अति सुंदर।

निर्मला कपिला ने कहा…

सृज कवि ऐसी कविता
कि अर्थ लय अस्मिता से
बेदख़ल हुआ हर शब्द
उसमें गा सके।

कहीं से कुछ नहीं पाया
जिसने गए बरस-भर
कवि तेरे सृजन में
वह पा सके।
बहुत सुन्दर पँक्तियां शुभकामनायें स्वीकार करें

Crazy Codes ने कहा…

adbhutaas rachna... most welcome in blog world...

Murari Pareek ने कहा…

sundar !! aisi koi rachnaa bane to aanand aa jaaye!!

महावीर ने कहा…

बहुत सुन्दर आशावादी कविता है.
रच दे
खुशबू का शिलालेख ऐसा
कि गंध खोया हर फूल
जिसे अपना कहे।
कहीं से कुछ नहीं पाया
जिसने गए बरस-भर
कवि तेरे सृजन में
वह पा सके।
बधाई.
महावीर शर्मा

रानीविशाल ने कहा…

आदरणीय,
आपकी शैली बहुत प्रभावशाली और भाव बहुत ही श्रेष्ठ है !!
सुंदर रचना पर बधाई स्वीकार करे ..
http://kavyamanjusha.blogspot.com/

kavi kulwant ने कहा…

ati sundar

अलका सिन्हा ने कहा…

आशाओं के आँगन में रोशनी बिखेरती सुन्दर रचना !
सृजन और विश्वास का पर्व यूँ ही मनता रहे !
-- अलका सिन्हा

बलराम अग्रवाल ने कहा…

'गा उठे हर होठ/ऐसा गीत लिख दे/साल के माथे पर/धूप की पहली किरण से।' साल की शुरुआत यादवजी ने बहुत ही सृजनशील आह्वान के साथ की है। उनके द्वारा आह्वाहित कवि पूरे साल आशा की इस किरण से कुछ न कुछ रचता रहेगा--विश्वास है।

बेनामी ने कहा…

sawagat hai aapka blog jagat me............
likhte rahiye..........

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

Khubsurat rachna...Blog jagat ko ap naye ayam den....apki charcha mere blog "Yadukul" par bhi !!

कडुवासच ने कहा…

.... प्रभावशाली व प्रसंशनीय रचना !!!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

shandaar abhivyakti

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

प्रिय सुरेश जी,
आपकी सराहना के लिए आभारी हूँ. यह हमारा एक छोटा सा प्रयास है. यदुकुल पर आते रहें तो ख़ुशी होगी.

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

बहुत सुन्दर लिखा आपने..कभी मेरे ब्लॉग पर भी आयें.

गीतिका वेदिका ने कहा…

अति-सुंदर खतरनाक सच