यह मेरी तीसरी पोस्ट है। मैं इसमें अपनी दो कवितायेँ आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ। इसके पूर्व मैंने एक-एक कविता प्रस्तुत की थी। आशा है , आप अपने समय का थोडा सा हिस्सा मेरी इन रचनाओं को देकर कृतार्थ करेंगे ।
-सुरेश यादव कविताएँ
शांति के प्रश्न
अपनी सुरक्षा की खातिर
बनाते आस-पास
बारूदी ढेर
भर भर मुट्ठियों में
उछालते चिंगारियां
एक दूसरे पर
धंसते गये
कितने गहरे
होड़ ही होड़ में
आग में झुलसती मुट्ठियां
बेताब होतीं खुलने को
प्रश्न शांति के सभी
लेट जाते नंगे बदन
बारूदी ढेरों पर
शांति, सपनों में -
करती है चहलकदमी
बेचैन सी
लटक जाती पर।
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बर्बर होना
रोटी लिएआंगन में रेंगते बच्चे की
मासूमियत ने
चील को सिखाया
झपट्टा मारना।
निर्जीवता ने
उकसाया गिद्धों को
नोच नोचकर
खाने को मांस
मुर्दों का ..... !।
कमजोरी ने
कितना कुछ सिखाया
दुनिया को बर्बर होना
कितना निर्मम है
मासूमों का
बेखबर होना।
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22 टिप्पणियां:
सुरेश जी आपकी लेखन शैली बहुत ही उम्दा लगती है , आप लाजवाब लिखते है , आज आपकी दोंनो कवितायें बहुत बढ़िया लगी ।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति सुरेश भाई ! शुभकामनायें !!
सशक्त रचनाएँ. बहुत पसंद आईं. बधाई.
सुरेश यादव अपनी मौलिक कविताओं के साथ अपने ब्लॉग पर आए हैं, नि:संदेह कविता प्रेमियों के लिए यह सुखद है। 'शान्ति के प्रश्य' और 'बर्बर होना'दोनों कविताएं ही उनकी गहरी मानवीय संवेदना और पुख्ता सृजनात्मकता का प्रमाण हैं। सुरेश भाई आप ब्लॉग पर भले ही देर से आए, पर आपका आना हिंदी पाठकों को अच्छा और सुखकर लगेगा, ऐसा मेरा विश्वास है।
सहज रूप से कविताएं सब कुछ कह जाती हैं। यही सृजन के जन जन तक पहुंचने की कारीगरी है।
कविताएँ अच्छी लगीं। शिल्प व कथ्य दोनों सतर्क हैं।
क्रम बनाए रखें।
शुभकामनाएँ।
आज की हकीकत को ब्यान करती कविता - शीर्षक का चुनाव बहुत सार्थक लगा .मन को चुने वाली रचना लगी .
Aapki saari kavitayein padi. bahut accha likhte hain aap. pahale aapko pada ho, smaran nahi.
saadar
Ila
ila_prasad1@yahoo.com
sach me suresh ji aapki rachnaye bahut hi badhiya hoti hai..pahale bhi padh chuka hoon aaj bhi padha aur ummid karata hoon isi tarah aap aur laazwab rachanao ko prstut karate rahenge....dhanywaad suresh ji
बहुत ही दमदार रचनाएं हैं सुरेश जी... कुछ सोचने को मजबूर करती। फुर्सत में देखें और प्रतिक्रिया भी दें।
www.chaumasa.com
'शांति के प्रश्न' और' बर्बर होना' दोनों कविताएँ कथ्य और शिल्प दोनों ही दृष्टियों से उत्तम हैं ।-काम्बोज
भाई सुरेश जी,
दोनों ही कविताएं मन को छील गयीं. बहुत सार्थक कविताएं.
बधाई.
चन्देल
namshkar
kavitaye beht bariki se tarashi gayi hain
in achhi kavito ke rasasavdn karane hetu hamri badhyi
anjana
anjanajnu5@yahoo.co.in
aap ki ye kavitayen sochane ko majboor karti hain. badhai !
-Ramesh Kumar
rameshkumarsingh1972@yahoo.com
सुरेश भाई, आपकी दोनों कविताएं बहुत महत्वपूर्ण और वर्तमान समय में बेहद प्रासंगिक कविताएं हैं। चलो, अब आपके इस ब्लॉग के माध्यम से आपकी ऐसी ही उत्कृष्ट कविताएं पढ़ने को मिलती रहेंगी।
-अनुज कुमार
वाह..... क्या बात कही आपने....सचमुच शांति की बात तो हम करते हैं पर मुट्ठियों में बारूद भींचे रहते हैं....बहुत ही उम्दा...गंभीर चिंतन को विवश करती दोनों ही रचनाये अद्वितीय हैं....
सुरेश जी बहुत अच्छी लगी कविताएँ. मेरा भी संग्रह शिल्पायन से ही छपा है...शायद आपकी जानकारी में हो....हो सके तो अपना संकलन भिजवाएं.
आपका शिरीष
shirish.mourya@gmail.com
Dear yadav Ji,
I went thru the blog. Very impressive.
sunita godara
sunitagodara@gmail.com
sureshji typing aur tippani ke mamle me anari hoon lekin aapki kavita dil ko chhoo gayee.aapme nayee kavita ki samajh aur vyakaran prachurata se mauzood hai.badhai ho.ramji yadav
सुरेश जी, आपकी कविता, बर्बर होना वाकई विचरोत्तेजक एवं अपने आप में एक बड़ी कसी हुई रचना है.
लिंक भेजने के लिए धन्यवाद!!
अंकित माथुर
mickymathur@gmail.com
Suresh jee aapki teeno kavitaon ne achchha prabhav chhoda hai aapki pehli kavita zindagi ki laya bahut sundar rachnaa hai apne sawalon ke saath hame apne ghere me leleta hai chidiya ke madhayam se aap bahut kuchh keh gaye hai ,badhai
बहुत कुछ कहती हैं रचनाएं।
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