शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

कविता

अपनी बात

कहीं धार्मिक चर्चा चल रही थी कि प्रकृति भी जड़ है। ऐसे धार्मिक मामलों में बहस करना अक्सर बेकार लगता है, क्योंकि जिस धर्म का या उसके पंथ का जो होता है- बस वह उसी का होता है। सारी खिड़कियाँ बंद करके सोचने का ऐसा विश्वास-भरा मार्ग सदियों की पुख्ता ज़मीन पर असीम फैलाव लिए है। यह विस्तार कितना भी व्यापक हो, कविता उसमें कभी नहीं समा सकी है। कविता के इस धर्म की व्यापकता, सोच और संवेदना के रेशे-रेशे तक होती है। सोच इसी लिए कविता में धड़कन की तरह होता है। बंद खिडकियों में कभी जिन्दा धड़कन नहीं होती है, कविता इसी लिए बंद खिडकियों को खोलती रहती है और संवेदना को झकझोरती रहती है। कविता का यह धर्म इतना खुला है कि बस सब के लिए खुला है।
  आशा रहेगी आप की प्रतिक्रिया की और विश्वास रहेगा मजबूत,लिखने  लिखाने का सबके लिए
-सुरेश यादव


पेड़ चलते नहीं

पेड़ ज़मीन पर चलते नहीं
देखा भी नहीं किसी ने
पेड़ों को ज़मीन पर चलते हुए

धूप हो कड़ी और थकन हो अगर
आस पास मिल जाते हैं पेड़ -
सिर के ऊपर पिता के हाथ की तरह 
कहीं माँ की गोद की तरह

आँखें नहीं होती हैं - पेड़ों की
न होते हैं पेड़ों के कान
वक्त के हाथों टूटते आदमी की आवाज़
सुनते हैं पेड़, फिर भी

आँखों देखे इतिहास को बताते हैं पेड़
अपनी देह पर उतार कर
बूढ़े दादा के माथे की झुर्रिओं की तरह

जीत का सन्देश देते हैं पेड़
नर्म जड़ें निकलती हैं जब
चट्टानें तोड़ कर

पेड़ों की अपनी भाषा होती है
धर्म का प्रचार करते हैं पेड़
फूलों में रंग और खुशबू भर कर

गूंगे तो होते नहीं हैं पेड़
बोलते हैं, बतियाते हैं
बसंत हो या पतझर
हर मौसम का गीत गाते हैं पेड़
कभी कोपलों में खिलकर
कभी सूखे पत्तों में झर कर
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पेड़ और धर्म

बस्ती के हर आँगन में
पेड़ हो बड़ा
खूब हो घना
खुशबूदार फूल हों
फल मीठे आते हों लदकर

छाँव उसकी बड़ी दूर तक जाए
खुशबू की कहानियाँ हो घर-घर

हवा के झोंके में
झरते रहें फल
उठाते-खाते गुजरते रहें राहगीर

ऐसा एक पेड़
बस्ती के हर आँगन में
लगाना ही होगा

लोग
भूल गए हैं धर्म
पेड़ों को बताना ही होगा।
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17 टिप्‍पणियां:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

पेड़ों की अपनी भाषा होती है धर्म का प्रचार करते हैं पेड़ फूलों में रंग और खुशबू भर कर

बहुत ही भावपूर्ण रचनाएँ हैं..... काश पेड़ों से यह सीख हम सब ले सकें.....
बहुत सुंदर ...बधाई

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

सुरेश जी पेड और धर्म के माध्यम से आपने धर्म को सीख देने .. बद्लने.. सहिष्णुता लाने का प्रयास कर रहे है.. बहुत नवीन विम्ब रचा है आपने.. खास तौर पर जब देश अयोध्या के फ़ैसले से पहले एक भय और सन्त्रास मे जी रहा है.. आपकी कविता आशा का सन्चार कर रही है... बहुत बढिया...

Subhash Rai ने कहा…

बड़ी निर्मम जड़्ता है सुरेश जी चारों ओर. नहीं, ये लोग अपने-अपने पेड़ भी बांट लेंगे, उसके चारों ओर बाड़ लगा देंगे, नहीं खाने देंगे अपने पेड़ का फल किसी और को. हवा पर वश चले तो अपनी क्यारी के फूल की गन्ध भी न उड़ने दें. नहीं मेरे आंगन की खुशबू से कोई और खुश हो किसी को मंजूर नहीं. पेड़ तो पेड़ ही है न, ज्यादा ऊंचा उठा तो काट डालेंगे अपनी कुल्हाड़ी से. आदमी नहीं रहते अब इन बस्तियों में. फिर भी उम्मीद तो उम्मीद है. बधाई आप ने उम्मीद जगायी.

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

पेड़ों के इर्द गिर्द
चलते हैं हम
लगता है जैसे
चल रहे हैं पेड़
वैसे बढ़ रहे हैं पेड़
पेड़ नहीं होता अधेड़
पेड़ धर्म बन जाए
इंसान धर्म
चाहना है यही
राह है सही।

Akanksha Yadav ने कहा…

लोग
भूल गए हैं – धर्म
पेड़ों को बताना ही होगा।

....सुन्दर और सार्थक भाव लिए रचना...बधाई.

राजेश उत्‍साही ने कहा…

क्‍या कहूं सुरेश जी। बस आपके बगीचे का पेड़ होने का मन है। बधाई।

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

ऐसा एक पेड़
बस्ती के हर आँगन में
लगाना ही होगा
लोग
भूल गए हैं – धर्म
पेड़ों को बताना ही होगा।

सुरेश जी ,

दोनों ही रचनायें प्रभावशाली हैं ....
आपको इस सृजन की बहुत बहुत बधाई .....!!

सुनील गज्जाणी ने कहा…

सम्मानिय सुरेश जी
प्रणाम !
इक दर्शन कि और ले गए आप '' पेड़ों का महत्व जितना जीवन के भीतर है उतना ही जीवन के बाहर भी ''
''आँखों देखे इतिहास को बताते हैं पेड़ अपनी देह पर उतार कर बूढ़े दादा के माथे की झुर्रिओं की तरह '' बेहद सुंदर लगी पंक्ति !
बधाई !
साधुवाद !

शरद कोकास ने कहा…

अच्छी कवितायें

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचनाये लिखी हैं। बधाई।

बलराम अग्रवाल ने कहा…

पेड़ के बहाने प्रकृति से जुड़ने की भावपूर्ण कविताएँ।

बेनामी ने कहा…

ऐसा है सुरेश जी , जिन्होंने पेड़ों को जड़ माना उन्हें आगे से " the सीक्रेट लाइफ आव प्लांट्स " किताब का नाम बता दें | यह किताब उन्हें सोचने पर मजबूर करेगी , धारणा बदलने पर भी |
http://en.wikipedia.org/wiki/The_Secret_Life_of_Plants

आपकी कवितायें सुन्दर हैं |
इला प्रसाद

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Bahut sikshaprad racnayen...bahut-2 badhai..

Sanjay Grover ने कहा…

Aapki bhumika bhi achchhi lagi.

निर्मला कपिला ने कहा…

लोग
भूल गए हैं – धर्म
पेड़ों को बताना ही होगा।
दोनो कवितायें बहुत अच्छी लगी। सुन्दर सन्देश। बधाई।

सुरेश यादव ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
रूपसिंह चन्देल ने कहा…

Bhai Suresh ji,

Bahut hi yatharthparak aur bhavpurn hain kavitayen.

Chandel