रविवार, 2 दिसंबर 2012

कविता



अपनी बात

मित्रो, लम्बे अंतराल के बाद  आप के सामने अपनी नई  पुरानी  तीन कवितायेँ लेकर फिर प्रस्तुत हूँ. आशा है. आप भूले नहीं होंगे. इस बीच कविताओं को गोष्ठियों और कवि  सम्मेलनों के माध्यम से अपने चाहने वालों तक पहुंचता तो रहा हूँ परन्तु अपने इस ब्लॉग के व्यापक मित्र मंच से इन दिनों अवश्य वंचित रहा. आज मैं आप से मिलकर आनंदित हूँ और आप के साथ संवेदनात्मक भागीदारी का आकांक्षी भी हूँ.
 -सुरेश यादव


जीवन पानी का बुलबुला है


जीवन, आदमी का अगर
पानी का बुलबुला है
आदमी, फिर क्यों
तूफ़ान से टकराने चला है


अवसादों का गहरा
असीम सागर है --अगर जीवन

लहर-लहर इसकी गीत है क्यों

--
और गीत भी जो चुलबुला है .

पावों के नीचे धरती है -आदमी के
आकाश बाँहों में
सभी कुछ तो है, आदमी का
आदमी के लिए
जीत का सिलसिला है

कौन कहता जीवन आदमी का
पानी का बुलबुला है
 .
कविता


आँखों में
 प्रश्नों की फसल उगाये
खामोश खड़ी कविता
शब्द कविता के
विपदा में फंसे  हैं
आग लगे जंगल में
बचाते हैं नीड़ कभी
बेबस बेजुबानों की आवाजें
बटोरते बस्तियों में कभी

चोटिल घायल हुए शब्द
सडकों पर कुचल कर
लहूलुहान होकर
फिर खड़े हो गए हैं - गाने के लिए

घायल चिड़िया के पंखों की तरह
अब काँपे हैं कविता के होंठ
हांफती पसलियों-सा स्पंदन
हुआ है- कविता की पलकों में

थरथराया बदन उसका
और वह बुदबुदा रही है -
"शब्दों की विपदा
बहुत दिन नहीं रहती
संघर्षों में घायल
शब्दों के लहू से रची कविता
बहुत दिन चुप नहीं रहती…

रे कवि !  हार मत

 
रे कवि ! हार मत साथ कविता है
कविता हारने नहीं देगी
टूटने नहीं देगी
थकने नहीं देगी
संकट की हर घडी में
शिव की तरह पी लेगी
कष्ट का ज़हर कविता
हर कड़ी
विपदा ओट लेगी

गलत आंकड़ों के सवाल कभी हल नहीं होते
मिटा दे - रिश्ते जो ऐसे हैं
स्लेट पर लिखे गलत सवाल की तरह
मान ले - कवि कभी अनाथ नहीं होता

अँधेरा कोई इतना गाढ़ा नहीं
कवि जिसे चल नहीं सकता चीर कर
तोड़ देता कवि
तभी तो हर एक रोशनी का दम्भ
शब्दों के दिए जलाकर
जलता है कवि
शब्दों की इस रोशनी में
और - बिखर जाता है फिर
रोशनी की तरह - तप कर !

सपनों का कवि से होता है बहुत गहरा रिश्ता
और - रिश्तों के होते हैं बहुत गहरे छल
भोगता है कवि सभी को

भागते हुए किनारों पर बनाता है -
ठहरा हुआ पुल !
कवि चाहता है जब
तोड़ देता है - सारे प्रपंच
महज़ शब्द का मौन तोड़ कर
विजेता होता है कवि
हर लड़ाई का
खुद से खुद को जीत कर
और - जिन्दा रहता है - मर कर …
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3 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत सुन्दर कवितायें....
अंतराल के बाद आपका स्वागत है...
अब आपको नियमित रूप से पढ़ पायेंगें ऐसी आशा है.

सादर
अनु

Rajesh Kumari ने कहा…

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल 4/12/12को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है

सुभाष नीरव ने कहा…

सुरेश भाई अच्छी कविताएं हैं। इतना अंतराल न आने दिया करें और निरंतरता बनाये रखें।