सुधी पाठकों और सजग रचनाकारों ने मेरी कविताओं को मेरे नए ब्लॉग पर जितनी सहजता, सहृदयता से स्वीकार किया है, मैं उन सभी का आभारी हूं। मेरा यह दायित्व है कि रचनाओं का चुनाव करते समय यह ध्यान अवश्य रखूं कि आपका अधिक समय न लूं, साथ ही रचनाएं बोझ बनकर भी आपके सामने न जाएं। मैं इस बार अपनी तीन कविताएं प्रस्तुत कर रहा हूं। आपकी सहज प्रतिक्रिया पाने का आकांक्षी रहूंगा।
- सुरेश यादव
कविताएं
जिन्दगी की लय
कहीं पर खड़ी मौत
मांगती हिसाब
जिए गए
एक-एक दिन का
नहीं तो
मतलब क्या है
मेरे या तुम्हारे-जन्म दिन का !
वह दिन
जो-इस चिड़िया के जन्म का था
उड़ान में भूली
उसे अब
याद कहां आता ?
मौत का अहसास
बहुत गहरे
उसको नहीं सताता
साल को साल से
गांठें लगाकर
इसने नहीं जोड़ा
उम्र को आंकड़ों से नहीं तोड़ा
मौत के भय से
कांपी नहीं
जिन्दगी की लय
साल .....महीने... दिन
....और काल....
सबकी खिल्ली उड़ाती
यह चिड़िया
देखो... उड़ रही है
बिना बधाई के।
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पिंजरा
तोता
पिंजरे को-पंखों से
अब नहीं खरोंचता
चोंच गड़ाकर
सलाखों को
चटका देने की कोशिश
अब नहीं करता
पंख फड़फड़ाकर
उड़ने की कोशिश में
पिंजरें की सलाखों से टकराकर
गिर-गिर कर
थक कर- बेसुध होने का यत्न नहीं करता
पानी की प्याली को
कभी नहीं ढुरकाता
तन गुलाम था तोते का
आजाद मन सब करता था
मन गुलाम है अब
देखो तो-
खुला हुआ पिंजरा है
बहर-फैला हुआ आकाश
भूलकर भी
तोता
उस ओर नहीं निहारता।
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शिकारी का हाथ
बहुत शान्त होता है
पानी में
एक टांग खड़ा
बगुला
बहुत शान्त होता है
नंगी डाल पर
गरदन लटकाए बैठा
गिद्ध
बहुत शान्त होता है
बूढ़े कंगूरे पर
चुपचाप बैठा
बाज
बहुत शान्त होता है
निशाना साधते हुए
बंदूक के कुंदे पर
टिका-
शिकारी का हाथ।
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13 टिप्पणियां:
Teeno rachnayen bahut gahree aur achhee hain!
बहुत सुन्दर..तीनों रचनाएँ उम्दा हैं.
एक से बढ़कर अद्बुत गुरूदेव। पिंजरा और शिकारी का हाथ तो गजब है गजब।
yadavji, jidgi ki laya,pinjra aur shikari ka haath teenon kavitayen adbhut hain.bahut gahrai tak jaati hain. anand krantivardhan
आपकी टिप्पणियाँ जितनी सटीक होती हैं, कविताएँ उनकी तुलना में कहीं अधिक गहराई लिए होती हैं। आप में गजब की अभिव्यंजना शक्ति है।
Achchhee rachnaaon ke liye meree
hardik badhaaee sweekaar kijiye.
सुरेश यादव जी
'कवि और शब्द का अटूट बंधन होता है. कवि के बिना शब्द तो हो सकते हैं, परंतु शब्द बिना कवि नहीं होता. एक हद तक यह सही है, पर दूसरी ओर 'कविता' केवल भाषा या शब्द का समूह नहीं. उन शब्दों का सहारा लेकर अपने अपने भावों को भाषा में व्यक्त करने की कला आपकी कलम कि रवानी बता रही है.
सुंदर अभिव्यक्ति के बधाई
देवी नागरानी
सुरेश जी,
अच्छी लगी आपकी कवितायें - सुंदर, सटीक और सधी हुई।
शुभकामनाओं सहित,
अमरेन्द्र
शिकारी के हाथ की तरह
शांत और सधी हुई
पर मन को साध लेने की
ताकत रखती हैं कविताएं।
शिकारी के हाथ की तरह
शांत और सधी हुई
पर मन को साध लेने की
ताकत रखती हैं कविताएं।
कविता कम शब्दों में ज़्यादा बात कहने की कला है, आपने इसे चरितार्थ किया है । यह भी अच्छा लगा कि आप प्रकृति के करीब हैं ।
बहुत सुन्दर कवितायेँ...आपका सार्थक-सृजन जारी रहे.
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शब्द सृजन की ओर पर आतंकवाद की चर्चा.
अच्छी लगी आपकी कवितायें - सुंदर, सटीक और सधी हुई।
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