मित्रो, मेरे इस ब्लॉग पर मेरी कविताओं को पढ़कर आपकी जो प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं, मेरे लिए उन्होंने उत्साह और प्रेरणा का कार्य किया। मैं आभारी हूँ। इस छ्ठी पोस्ट में मैं अपनी तीन कविताएं प्रस्तुत कर रहा हूँ। मेरी ये कविताएं भी आपसे पहले जैसा ही संवेदनात्मक संबंध कायम रख पाएंगी, यह आशा करता हूँ।
-सुरेश यादव
बिछा रहा जब तक
घिरा रहा
शुभ-चिन्तकों से
बिछा रहा
जब तक सड़क सा !
खड़ा हुआ तन कर
एक दिन
अकेला रह गया
दरख़्त-सा !
तिनके में आग
बरसाती मौसम का डर
अधबुना रह न जाए नीड़
चिड़िया को फिकर है
बेचैन हुई उड़ती
इधर से उधर
तिनके जुटाती
जलते चूल्हे से भी
खींचकर ले गई तिनका
बुन रही है
नीड़ में जिसको जल्दी-जल्दी !
आग है तिनके में
और
चिड़िया– आग से बेखबर है
चिड़िया को बस
नीड़ की फिकर है।
वादे
उम्र भर
संग चलने के वादे
कितनी जल्दी थक जाते हैं
दो चार कदम चलते
रुक जाते हैं
ज़िन्दगी की राह
इतनी उबड़-खाबड़ है कि
वादों के नन्हें-नन्हें पांव
डग नहीं भर पाते
कोई भी मोड़
बहाने की तरह
खड़ा मिल जाता है इनको
और
वादे– बहाने की उंगली थाम कर
जाने कहाँ चले जाते हैं।
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19 टिप्पणियां:
सुरेश जी हमेशा की तरह आपकी रचनाएँ बहुत कुछ कह जाती हैं...सशक्त क्षणिकाएँ...बधाई स्वीकारें
तीनों रचनायें बहुत बढ़िया...बधाई.
जितनी सुन्दर कविताएं, उतनी ही सुन्दर प्रस्तुति ! बधाई !
भाई यादव जी ,आपकी ये छोटी-छोटी कविताएँ मन को छू गई ।
STARIY KAVITAAON KE LIYE AAPKO
BADHAAEE.
पहली कविता में विनम्रता और अहंमन्यता की स्थितियों में मनुष्य के सामाजिक स्वीकार्य-अस्वीकार्य का चिंतन है तो दूसरी में अस्तित्व को बचाने की दौड़ में शामिल सामाजिक के आत्महनन का सफल चित्रण है। तीसरी कविता भी वर्तमान समय में परस्पर अहं के टकराने की स्थितियों में आई बढ़ोत्तरी की ओर संकेत करती है। अपने समय को व्यक्त करने की आपकी क्षमता को बधाई।
भाई सुरेश जी,
कोई भी मोड़
बहाने की तरह
खड़ा मिल जाता है इनको
और
वादे– बहाने की उंगली थाम कर
जाने कहाँ चले जाते हैं।
क्या अद्भुत भावाभिव्यक्ति है. तीनों कविताएं मन को आंदोलित कर गईं. पहले तो यत्र-तत्र ही आपकी कविताएम पढ़ने को मिलती थीं, लेकिन अब ब्लॉग के माध्यम से आपकी कविताओं का आनंद निरंतर मिल रहा है. इसे जारी रखेंगे. इसी बहाने नयी कविताएं लिखने की प्रेरणा लेते हुए हिन्दी काव्य जगत में अपनी दस्तक दर्ज़ करवाते रहेंगे.
चन्देल
अच्छी रचना है..जारी रखें
रचना सागर
www.sahityashilpi.in
तीनों रचनायें बहुत बढ़िया...बधाई.
प्रिय भाई सुरेश जी,
बधाई. आपकी पहली दो कविताएं बहुत ही सकारात्मक और संवेद्य है. उनके साथ की तस्वीरें भी रचना को बल देती हैं. तीसरी कविता के बारे में क्या कहूँ.. बन्धु, विश्वास को मैं प्रेम का मेरुदंड मानता हूँ. विश्वास केवल वहां तक नहीं देखता जहाँ तक नज़र जाती है, वह उसके आगे, परोक्ष और नेपथ्य तक देखता है और उसकी पीड़ा को समझ कर उसे अपने में समेट लेता है,
".. कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूँ कोई बेवफा नहीं होता.."
प्रेम को प्रेम की तरह जियो दोस्त...
अशोक गुप्ता
सुरेश जी ,
तीनो ही अद्भुत रचनाये ....
खड़ा हुआ तन कर तो रह गया दरख़्त सा .....सही कटाक्ष ....!!
चिड़िया– आग से बेखबर है
चिड़िया को बस
नीड़ की फिकर है।
इस आग से बेखबर रहने वाले ही शायद नीड़ बना पाते हैं .....!!
कोई भी मोड़
बहाने की तरह
खड़ा मिल जाता है इनको
और
वादे– बहाने की उंगली थाम कर
जाने कहाँ चले जाते हैं...
जी परिचित हूँ ...तभी तो बची खुची मुहब्बत को गठरी में बांध रखा है .....!!
चिमनी पे से चाँद उतर आये तो भेजिएगा .....!!
बंधुवर,
वादे नाम कविता बहुत ही उत्तम है। बधाई।
...सुन्दर रचनाएं !!!!
suresh jee,
sadhuwad aapko ki aap ne man ko choone wali kavitae hume padhne ko pradan ki , choti kavitae magar gambher kavitae hai. badhae
तीनों कविताएँ बहुत ही खूब लगी..
"अरे नासमझ चिड़िया यह भी न समझी की
पानी से बच भी गयी तो आग से न बच पाएगी
पर यह भी उम्मीद है बाकि की शायद
बारिश की बूंदों से आग बुझ जाएगी "
शुक्रिया नीरव जी बेहतरीन कविताओं के लिए
बहुत सुन्दर रचनाएँ..बधाई !!
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'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर हम प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती रचनाओं को प्रस्तुत कर रहे हैं. सुरेश जी आपकी रचनाओं का भी हमें इंतजार है. hindi.literature@yahoo.com
आपकी तीनों कवितायेँ बेजोड़ लगीं...आपकी रचनाएँ अक्सर पढता रहता हूँ..हार्दिक बधाई !!
घिरा रहाशुभ-चिन्तकों सेबिछा रहाजब तक सड़क सा !
खड़ा हुआ तन करएक दिनअकेला रह गयादरख़्त-सा !
कोई भी मोड़बहाने की तरहखड़ा मिल जाता है
बेहतर बुनावट ..सच्चे कसीदे
tinke men aag ....rachna kai bar-2 padhi shabd nahi han ki kaya kahun ...
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