अपनी बात
प्रतिरोध उतना ही सच है जितना जीवन। कदम कदम पर बाधाएं जीवन की गति को जीवन्तता प्रदान करती हैं और बाधाओं पर विजय जीवन के प्रति गहरी आश्वस्ति होती है। यह आशा, विश्वास और आस्था का संसार बहुत अलग होता है। निराशा अवसाद और अविश्वास के संसार से, क्योंकि जहाँ आश्वस्ति होती है, वहीँ सृजन होता है, जहाँ अविश्वास होता है। वहीँ विध्वंस होता है। .कविता हमेशा और निश्चित रूप से विध्वंश के विरोध में खड़ी होती है क्योंकि वह तो सदा ही जीवन को आश्वस्त करने का कार्य करती रही है और कर रही है। चट्टानें कितनी भी कड़ी हों नर्म जड़ों ने हमेशा उनको चटका दिया है। जीने की चाहत जब जब प्रतिरोध बनती है, वह सृजन बनती है।
अपनी चार कवितायें पुन: विलम्ब के साथ आप के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ। आशा है, आप पहले सी सहृदयता के साथ स्वीकार करेंगे और अपनी बेबाक, महत्वपूर्ण राय से इन कविताओं को पोषित करेंगे।
-सुरेश यादव
प्रतिरोध उतना ही सच है जितना जीवन। कदम कदम पर बाधाएं जीवन की गति को जीवन्तता प्रदान करती हैं और बाधाओं पर विजय जीवन के प्रति गहरी आश्वस्ति होती है। यह आशा, विश्वास और आस्था का संसार बहुत अलग होता है। निराशा अवसाद और अविश्वास के संसार से, क्योंकि जहाँ आश्वस्ति होती है, वहीँ सृजन होता है, जहाँ अविश्वास होता है। वहीँ विध्वंस होता है। .कविता हमेशा और निश्चित रूप से विध्वंश के विरोध में खड़ी होती है क्योंकि वह तो सदा ही जीवन को आश्वस्त करने का कार्य करती रही है और कर रही है। चट्टानें कितनी भी कड़ी हों नर्म जड़ों ने हमेशा उनको चटका दिया है। जीने की चाहत जब जब प्रतिरोध बनती है, वह सृजन बनती है।
अपनी चार कवितायें पुन: विलम्ब के साथ आप के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ। आशा है, आप पहले सी सहृदयता के साथ स्वीकार करेंगे और अपनी बेबाक, महत्वपूर्ण राय से इन कविताओं को पोषित करेंगे।
-सुरेश यादव
धार पा गए
गर्म दहकती भट्टी में
पड़े रहे तपते हुए
और एक दिन
ढलने का अहसास पा गए
संभव और कुछ नहीं था
इस हालात में
गर्म थे -
पिटे खूब
और एक दिन
धार पा गए
अपनी जड़ें लेकर
सूख चुके हैं
समय की धूप में
वे तमाम पौधे
रोपा था तुमने
बहुत फुरसत में जिन्हें
स्नेह के साथ
लेकिन खूब सूरत पत्थरों पर
नफ़रत में भरकर
जिन्हें कभी
जड़ों समेत उखाड़ा
और तुमने कीचड में फेंक दिया था
वे –
जहाँ-जहाँ गिरे
अपनी जड़ें लेकर उठे
और, खड़े हो गए तनकर
दरख़्त बनाकर ।
उखड़े दरख़्त की जड़ें
आंधी जब आती है
पेड़ों को हिलाती है
अपनी दिशा की ओर उनको झुकाती है
झकझोरती है आंधी पेड़ों को
पत्तों को दूर ले जाकर गिराती है
ज़मीन और जड़ों का रिश्ता
बचाने के लिए पेड़
आंधी से लड़ते हैं
टूटते हैं, जूझते हैं
उखाड़ देती आंधी जब
पेड़ को ज़मीन से
उखड़े हुए दरख़्त की जड़ें तब
पैने पंजे की तरह तन जाती हैं
और-
आती हुई आंधी की छाती में
समां जाती हैं ।
पेड़ों को हिलाती है
अपनी दिशा की ओर उनको झुकाती है
झकझोरती है आंधी पेड़ों को
पत्तों को दूर ले जाकर गिराती है
ज़मीन और जड़ों का रिश्ता
बचाने के लिए पेड़
आंधी से लड़ते हैं
टूटते हैं, जूझते हैं
उखाड़ देती आंधी जब
पेड़ को ज़मीन से
उखड़े हुए दरख़्त की जड़ें तब
पैने पंजे की तरह तन जाती हैं
और-
आती हुई आंधी की छाती में
समां जाती हैं ।
परिंदे
हवाओं के हाथों में
देखे हैं , इन परिंदों ने
जब से पैने खंजर
खोले और पसार दिए पंख अपने
ये परिंदे उड़ानें ऊंची भरते हैं
हवा से बातें करते हैं
पजों में धरती
इनके पंखों पर आकाश
ये परिंदे
जब चीं-चीं, चीं-चीं करते हैं
मौसम इनके पंखों से झरते हें
हवाओं के हाथों में
देखे हैं , इन परिंदों ने
जब से पैने खंजर
खोले और पसार दिए पंख अपने
ये परिंदे उड़ानें ऊंची भरते हैं
हवा से बातें करते हैं
पजों में धरती
इनके पंखों पर आकाश
ये परिंदे
जब चीं-चीं, चीं-चीं करते हैं
मौसम इनके पंखों से झरते हें
आग बरसाता सूरज हो
या बादलों की बरसात हो -तेजाबी
परिंदे उड़ते हैं
नीड़ जब से उजड़े हैं
इन परिंदों के
उड़ते उड़ते सोते हैं
ये उड़ते उड़ते जागते हैं
पूरे आसमान को
ये परिंदे
अपना घर कहते हैं ।
000
या बादलों की बरसात हो -तेजाबी
परिंदे उड़ते हैं
नीड़ जब से उजड़े हैं
इन परिंदों के
उड़ते उड़ते सोते हैं
ये उड़ते उड़ते जागते हैं
पूरे आसमान को
ये परिंदे
अपना घर कहते हैं ।
000
14 टिप्पणियां:
जो तपता है वही धार पाता है ...चरों रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं
पूरे आसमान को
ये परिंदे
अपना घर कहते हैं......
lazabab shabd sanyojan......
उखाड़ देती आंधी जब
पेड़ को ज़मीन से
उखड़े हुए दरख़्त की जड़ें तब
पैने पंजे की तरह तन जाती हैं
और-
आती हुई आंधी की छाती में
समां जाती हैं ।waah... her rachna mein dam hai
गहन अनुभूतियों को शब्द मिले हैं!
सादर!
पिटे खूब
और एक दिन
धार पा गए ....
बहुत खूब...
सुन्दर रचनाएं ...
सादर बधाई...
gahan anubhooti aur kalpanayen se labrej kavitayen...bahut achchi lagi.
एक से बढ़ कर एक कविताएं।
सादर
बहुत सुंदर
सभी रचनाएं एक से बढकर एक
शुभकामनाएं
सुन्दर रचनाएं!
suresh ji ..aaj pahli bar aapka blog dekha..sach kahun kuchh hat kar lga ..aapne jo apne vichar likhe hain jindagi ko lekar ...mere vicharon se milte hain..ab aana hota rahega...
आज हलचल के माध्यम से यहाँ आना हुआ
आपकी हर कविता जीवंत है .......बहुत खूब ...आभार
उखाड़ देती आंधी जब
पेड़ को ज़मीन से
उखड़े हुए दरख़्त की जड़ें तब
पैने पंजे की तरह तन जाती हैं
और-
आती हुई आंधी की छाती में
समां जाती हैं ।
....बहुत खूब...सभी रचनाएँ बहुत सुन्दर...
सोना तप कर ही चमकता है,गिर कर उठना ही जीवन है,ऊंची उडान न हो तो मंजिल कहां.
aapki "ukhde darakht ki jaden" bahot sundar rachna lagi.. alag soach. khaskar ..painey panje.. aandhi ki chhati.. i like it. keep it up sir ..
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