अपनी बात
मित्रो, आप सभी को पावन गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। मेरे इस ब्लॉग को आज पूरे दो वर्ष हो गए हैं। २६ जनवरी २०१० को पहली पोस्ट की थी। अब तक कुल २१ पोस्ट -अंक आप के सामने ला सका हूँ और मात्र ५२ कवितायेँ प्रकाशित हुई हैं। मित्रों को मेरी धीमी गति से शिकायत है और मेरी यह आदत है। सच मानिये, मेरी यह चिंता रहती है कि आप के कीमती समय का एक भी अंश निरर्थक शब्दजाल में नष्ट न हो, इसीलिए कोशिश रहती है कि अपनी चुनी हुई कवितायें धीरे-धीरे आप के सामने लाता रहूँ तथा आप के साथ मेरी संवेदनात्मक साझेदारी बनी रहे। इसी विश्वास के साथ अपनी तीन कवितायें आप के सामने रख रहा हूँ। आप की प्रतिक्रियाएं मेरी लिए महत्व की होती हैं। अतः प्रतीक्षा रहेगी…
-सुरेश यादव
मित्रो, आप सभी को पावन गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। मेरे इस ब्लॉग को आज पूरे दो वर्ष हो गए हैं। २६ जनवरी २०१० को पहली पोस्ट की थी। अब तक कुल २१ पोस्ट -अंक आप के सामने ला सका हूँ और मात्र ५२ कवितायेँ प्रकाशित हुई हैं। मित्रों को मेरी धीमी गति से शिकायत है और मेरी यह आदत है। सच मानिये, मेरी यह चिंता रहती है कि आप के कीमती समय का एक भी अंश निरर्थक शब्दजाल में नष्ट न हो, इसीलिए कोशिश रहती है कि अपनी चुनी हुई कवितायें धीरे-धीरे आप के सामने लाता रहूँ तथा आप के साथ मेरी संवेदनात्मक साझेदारी बनी रहे। इसी विश्वास के साथ अपनी तीन कवितायें आप के सामने रख रहा हूँ। आप की प्रतिक्रियाएं मेरी लिए महत्व की होती हैं। अतः प्रतीक्षा रहेगी…
-सुरेश यादव
साफ़ सफाई तो होगी
इस घर की
दीवारों की, छत की
घर के भीतर घर ?
समझो सपना भर है
किसी और की छत को
मत आकाश बना
पंखे लगे हुए हैं - हर छत के नीचे
जितनी जोर उड़ान भरेगी
तेज रफ़्तार - टकराएगी पंखुरिओं से
घायल होकर उतनी बार गिरेगी
मौत लिखी यहाँ हर उड़ान पर है
आखिर और किसी का घर है ।
घर और डर
भीतर डर है
बाहर डर है
कहीं बीच में घर है
इस घर की
दीवारों की, छत की
घर के भीतर घर ?
समझो सपना भर है
किसी और की छत को
मत आकाश बना
पंखे लगे हुए हैं - हर छत के नीचे
जितनी जोर उड़ान भरेगी
तेज रफ़्तार - टकराएगी पंखुरिओं से
घायल होकर उतनी बार गिरेगी
मौत लिखी यहाँ हर उड़ान पर है
आखिर और किसी का घर है ।
घर और डर
भीतर डर है
बाहर डर है
कहीं बीच में घर है
घर आने में डर है
घर से जाने में डर है
घर की साँसों में डर है
घर से जाने में डर है
घर की साँसों में डर है
घर की यादों में डर है
भूलो घर - तो डर है
डर के हाथों -खेल रहा घर है
डर की चर्चा घर- घर है
जाने घर के भीतर डर है
या फिर -
डर के भीतर घर है।
भूलो घर - तो डर है
डर के हाथों -खेल रहा घर है
डर की चर्चा घर- घर है
जाने घर के भीतर डर है
या फिर -
डर के भीतर घर है।
00
5 टिप्पणियां:
अपने पैरों
अपनी राह
जितना छला हूँ
बस -
उतना ही चला हूँ…
सभी कवितायेँ बहुत अच्छी ..यह बहुत अच्छी लगी ..गहन बात कहती हुई
behad khubsurt kavitaye......zindgi ki sachaiyo ko bayaan krti
meri shubhkaamnaye
priya bhai Suresh jee aap bahut gehri baat keh gaen hai in kavitaon main badhai.
sabhi kavitaein bahut acchi hain.
saadar
Ila
वाह-वाह.
एक टिप्पणी भेजें